अपने आशियाने का अधूरा सपना लिए अंतरिक्ष ग्रुप के एक घर खरीदार की जीवन लीला समाप्त


विलंबित 'अंतरिक्ष संस्कृति' परियोजना में 1200 से अधिक होमबॉयर्स का जीवन दांव पर है, इसलिए यह सवाल है कि क्या मोदी 2.0 में  पीड़ित उपभोक्ताओं के अर्ध-निर्मित घरों पर छाया अंधेरे कभी दूर हो सकेगा ताकि उनके प्राणों की रक्षा हो सके


देश भर में बिल्डरों के सताये हुए लाखों  होमबॉयर्स के लिए अपने सिर पर छत का इंतजार एक अंतहीन दुःस्वप्न बन गया है। वित्तीय कठिनाइयों, मानसिक, भावनात्मक आघात, और सालों से अटकी घर परियोजनाओं से उत्पन्न अवसाद ने अपना नकारात्मक असर दिखाना शुरू कर दिया है, जिससे कई खरीदारों के जीवन की डोर असमय ही  कटने लगी है। हाल ही के एक उदाहरण में, एक वरिष्ठ नागरिक, जिन्होंने अंतरिक्ष रियलटेक प्राइवेट लिमिटेड की 2010 में शुरू हुई  परियोजना 'अंतरिक्ष संस्कृति'  में अपनी आजीवन बचत का निवेश किया था, प्रोजेक्ट पर जारी अनिश्चितता के कारण जारी तनाव और उत्पीड़न को सहन नहीं कर सके। इस माह (जून 2019) की शुरुआत में, उनके बी.पी. में अचानक बहुत गिरावट आ गयी और वह शहर के एक हॉस्पिटल में आईसीयू में अपने इलाज के दौरान ही इस दुनिया से चल बसे।
उल्लेखनीय है  कि अंतरिक्ष  ग्रुप  ने 2010-11 में NH-24, गाजियाबाद पर अंतरिक्ष  संस्कृति नामक प्रोजेक्ट लॉन्च किया था, जिसमें बिल्डर-खरीदार समझौते के तहत 2014 तक होमबॉयर्स को प्रोजेक्ट हैंडओवर निर्धारित किया जाना था, लेकिन आज तक फ्लैट्स की डिलीवरी नहीं की गई है।
इस परियोजना के उत्पीड़ित होमबॉयर्स, जिन्होंने फ्लैटों के कुल मूल्य का 90-95% भुगतान किया है, एनसीडीआरसी और यूपी रेरा  जैसे कई मंचों पर अपने फ्लैटों के कब्जे के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम नहीं निकला है।
इस परियोजना के डी-ब्लॉक में 2बीएचके (BHK) फ्लैट बुक करने वाली होमबायर रेखा पाल शाह कहतीं हैं, "नरेंद्र मोदी सरकार को होमबॉयर्स की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहिए अन्यथा सिस्टम की असंवेदनशीलता हमारे बीच कई साथी खरीदारों का जीवन छीन लेगी, और मोदी जी के दूसरे कार्यकाल के लिए ऐसी घटनाएं बिल्कुल भी शुभ नहीं होंगी। ऐसे परिदृश्य में, सरकार की महत्वाकांक्षी 'हाउसिंग फॉर ऑल' परियोजना एक दूर का सपना ही साबित होगी।2012-13 में इस प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक करने वाले एक अन्य होमबायर आनंद प्रियदर्शी के अनुसार, "हम बिल्डर राकेश यादव द्वारा परियोजना की वास्तविक जानकारी को छिपाने और सरासर धोखाधड़ी और जालसाजी के  शिकार हैं। जब हमने 2010-11 में अपने फ्लैट बुक किए, तो बिल्डर ने यह नहीं बताया कि परियोजना की भूमि का स्वामित्व उसकी कंपनी के पास नहीं है, बल्कि एक सहकारी आवास सोसायटी, रक्षा विज्ञान समिति (आरवीएस) के पास है, जिसके खिलाफ जीडीए ने 42 करोड़ रुपये के कम्पाउंडिंग  शुल्क की वसूली के लिए नोटिस दे रखा है।
अंतरिक्ष संस्कृति वेलफेयर एसोसिएशन (आसवा) के बैनर तले होमबॉयर्स ने विजय नगर, गाज़ियाबाद पुलिस स्टेशन में अंतरिक्ष ग्रुप के एमडी  राकेश यादव और दो अन्य निदेशकों के खिलाफ धारा 420 और 407 के तहत आरोप पत्र दायर किया था, जिसके बाद गाजियाबाद जिला अदालत में मामला दर्ज किया गया था लेकिन बिल्डर इलाहाबाद उच्च न्यायालय से मामले की कार्यवाही पर रोक लगाने में कामयाब रहा। आसवा अध्यक्ष जितेन दलाई के अनुसार, अत्यधिक प्रभावशाली यादव एक के बाद एक परियोजनाएं शुरू कर भोलेभाले घर खरीदारों को चकमा देना जारी रखे हुए है। पिछले आठ वर्षों से अधिक समय से हम घर का पज़ेशन ना मिलने के कारण भारी तनाव में हैं। बिल्डर ने हमें  रिफंड, कब्जे में देरी के लिए ब्याज और मुआवजे देने से इनकार कर दिया है। किराए के साथ-साथ होम लोन की ईएमआई देने के चलते हम गंभीर वित्तीय संकट और मानसिक दंश की पीड़ा झेल रहे हैं, जिससे  हमारे स्वास्थ्य और जीवन को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
चूंकि इस विलंबित परियोजना में 1200 से अधिक होमबॉयर्स का जीवन दांव पर है, इसलिए यह सवाल है कि क्या मोदी 2.0 में  पीड़ित उपभोक्ताओं के अर्ध-निर्मित घरों पर छाया अंधेरे कभी दूर हो सकेगा ताकि उनके प्राणों की रक्षा हो सके?


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